संतान गणपति स्तोत्र से सन्तान की प्राप्ति

विवाह के बाद नवदम्पती पर सुन्दर अौर स्वस्थ संतान को जन्म देने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है। कई बार किसी प्रकार की समस्या के कारण दम्पती को सन्तान सुरव की प्राप्ति नहीं होती है तो घर परिवार मे भी अनेक प्रकार की समस्याओं का उदय होनें लगता है। समस्या के निराकाण के लिए भाद्रपद माह या माघ माह के शुक्ल पक्ष की श्री गणेश चतुर्थी को फलाहारी रहकर शुभ मुहुर्त में गणपति और सिद्ध गणेश यंत्र की स्थापना का स्वयं कुश या उन अथवा कम्बल के आसन उक्सतराभिमुख (उत्तर दिशा की ओर मुँह करके) बैठ जाए। किसी योग्य ब्राह्मण से गणपति जी और सिद्ध गणेश यंत्र का पूजन कराकर सन्तान प्राप्तयर्थे (सन्तान प्राप्ति के लिए) जितनी संख्या (1, 5, 11 या 2) में पाठ करना हो उतनें पाठ का संकल्प कराएँ। पाठ की जितनी अधिक संख्या में पाठ करेंगें लाभ उतना ही जल्दी प्राप्त हाेगा। स्तोत्र पाठ के बाद "ऊँ गं गणपतये नम: " मंत्र की 11, 5, 3 या 1 माला का जाप करें। प्रतिदिन चन्द्रमा को जल से अर्घ्य देकर गणपति जी और चन्द्रमा को लड्डूओं का नैवैद्य लगाकर आरती करें। यदि कोई मनुष्य 21 दिन लगातार पाठ करता है, तो मन के अनुकुल संतान की प्राप्ति होती हैं। यदि कोई 21 दिन का लघु (छोटा) अनुष्ठान किसी कारण करनें में असमर्थ हो तो प्रति माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखकर उपरोक्त विधि से पूजन, पाठ जाप करना चाहिए। मनोंवांच्छित संतान प्राप्ति के लिए यह सरल और सफलता देनें वाला उपाय है। यह स्तोत्र सर्व सिद्धी प्रदायक (सभी कार्य सिद्ध करने वाला) है। पाठको को लाभ प्राप्त करने के लिए मैं यह स्तोत्र लिख रहा हूँ।

संतान गणपति स्तोत्र

नमो$स्तु गणनाथाय सिद्धी बुद्धि युताय च।
सर्वप्रदाय देवाय पुत्र वृद्धि प्रदाय च।।
गुरू दराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते।
गेाप्याय गोपिताशेष भुवनाय चिदात्मनें।।
विश्व मूलाय भव्याय विश्वसृष्टि करायते।
नमो नमस्ते सत्याय सत्य पूर्णाय शुण्डिनें ।।
एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम : ।
प्रपन्न जन पालाय प्रणतार्ति विनाशिने ।।
शरणं भव देवेश सन्तति सुदृढ़ां कुरु।
भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गण नायक।।
ते सर्वे तव पूजार्थ विरता : स्यु : वरो मत : ।
पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्व सिद्धि प्रदायकम्।।

श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के साथ इस स्तोत्र का प्रयोग करने से सन्तान सुख की अवश्य प्राति होती है। जिन्हें कन्या रत्न है अौर पुत्र रत्न नही है तो उपरोक्त विधि से स्तोत्र का प्रयोग करनें से पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है। पुत्र प्राप्ति के लिए संकला में पुत्र संतति प्राप्तर्थे (पुत्र संतान प्राप्ति के लिए) का प्रयोग करनें से अवश्य लाभ होगा।

होली के 8 चमत्कारी टोटके

होली का त्यौहार भारत वर्ष में बडी श्रद्धा अौर उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह दिन मंत्र सिद्ध करनें और तांत्रिक क्रियाओँ के लिये बहुत ही लाभ दायक होता है, तांत्रिक लोग इस दिन मंत्र सिद्ध कर सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं। इस दिन आमन्त्रित कर लाइ गई वनतपति तंत्र मे काम आने वाली वनस्पति की वस्तु (पंचाग, जड़, बाँदा आदि) अभिमंत्रित करने पर और इस दिन किए गए टोनें, टोटके चमत्कारी असर दिखातें हैं। इस दिन प्रयोग करनें वाले टोटकें मैं पाठक गण के लाभ के लिए लिख रहा हूँ, यदि आप इनका प्रयोग करते हैं, तो आप अवश्य ही इनसे लाभान्वित होंगे।

(1) अपने पति का दुसरी स्त्री से पीछा छुटाने के लिए - होली जलते समय 3 गोमती चक्र पर सिंदुर से तिलक कर, उस स्त्री का जिससे पीछा छुटाना हो उसका नाम लिखकर, होली की अग्नि में फेंक कर अपने घर चली आए। आते जाते और यह प्रयोग करते समय किसी से कुछ बोले नही आैर ना ही पीछे पलट कर देखे, इस प्रयोग से आपके पति का उस स्त्री से पीछा छुट जएगा।

(2) पति से मन मुटाव दुर करने अौर दाम्पत्य सुख प्राप्ति के लिए - आप 7 गोमती चक्र, 7 लघु नारियल, 7 मोती शंख और उन्हे पीले वस्त्र मे बाँधकर, किसी भी तरह से अपने पति के उपर से 7 बार उतारकर जलती हुई होली की अग्नि में फेंक कर बिना बोले, बिना पीछे देखे अपने घर चले आएँ। इस प्रयोग से पति पत्नि में प्रेम बढ़कर दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होगी।

(3) मधुर सम्बन्ध बनाने के लिए - होली के दिन अभिमंत्रित किया हुआ 5 -5 रत्ती के 5 मोतीयों का कड़ा (बेसलेट) धारण करने से पति पत्नि या प्रेमी प्रेमिका में मधुर सम्बन्ध बनतें हैं, इसे धारण करने के साथ प्रत्येक पूर्णिमा को दूध का अर्ध्य चन्द्रमा कोचाँदी के पात्र (बर्तन) से या स्टील के पात्र से देने से सम्बन्धों में मधुरता अधिक आएगी।

(4) मनोकामना पूर्ति के लिए - होली के दिन 108 बिल्व पत्र (बेलपत्र) पर सफेद चंदन की बिन्दी लगाकर " ॐ नम: शिवाय " मंत्र से एक मंत्र में एक बिल्व पत्र शिव लिंग पर चढ़ाएँ इस प्रकार से 108 बिल्व पत्र चढाकर पंच मेवे की खीर का नैवैद्य लगाकर अपनी मनोंकामना पूर्ण करनें की प्रार्थना करें। होली के दिन से शुरू करके आने वाले 5 सोमवार यह प्रयोग करें। इस प्रयोग से आपकी मनोंकामना अवश्य ही पूर्ण होगी।

(5) मनोकामना पूर्ति के लिए - होली के दिन हनुमान जी को पंचबत्ती (पाँच बत्ती वाला) दीपक जलाकर पाँच सुगन्धित अगरबत्ती की धूप देकर पंचरंगी मिठाई का नैवैद्य लगाकर अपनी मनोंकामना पूर्ण करनें की प्रार्थना करें, इस प्रयोग से आपकी कोई एक मनोंकामना की पूर्ति हो जाएगी।

(6) शीघ्र विवाह के लिए - होली के दिन एक पान के पत्ते पर एक पूजा की सुपारी पाँच और हल्दी गांठ (खड़ी हल्दी) रखकर शिव लिंग पर चढ़ाकर शीघ्र विवाह करानें की प्रार्थना करके अपने घर चले आऐ। शीघ्र विवाह के योग बन जाएँगे।

(7) स्मरण (याददाश्त) शक्ति बढ़ाने अौर वाणी में सुधार के लिए - होली के दिन गोरख मुण्डी का पौधा अभिमंत्रित करके लाकर रात्रि में उसका पूजन कर मृत्युञ्जय मंत्र की 11 माला जाप करें, दुसरे दिन उसे सुखा लें, पंचमी को उसका चूर्ण बनाकर सुबह और सोने के पहले एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ रोजाना सेवन करनें से स्मरण शक्ति बढ़ती है और वाणी (बोलने) में सुधार होता है।

(8) प्रेम विवाह के लिए - होली के दिन से शुभ मुहुर्त में पीले वस्त्र पहनकर पीले आसन पर स्फटिक की माला से " ॐ लक्ष्मी नारायणाय नम: " मंत्र की कम से कम एक माला प्रतिदिन 3 माह तक करनें और प्रत्येक गुरुवार को लक्ष्मी नारायण मन्दिर या राम (जहाँ सीता-राम हों) मन्दिर अथवा राधा कृष्ण मन्दिर में पीले फल और पीले मिष्ठान्न (मिठाई) चढ़ाकर शीघ्र विवाह या जिसे आप चाहते है उससे विवाह करानें और विवाह में आ रही रूकावट को हटानें की प्रार्थना करने से उपरोक्त मनोकामना पूर्ण होगी।

कुम्भ स्नान का फल अपने निवास स्थान से कैसे प्राप्त करें?

पिछले आर्टिकल्स में मैंने कुम्भ स्नान की परम्परा अौर महत्व और अर्ध कुम्भ की परम्परा अौर महत्व में बताया था, जो धर्म परायण व्यक्ति, श्रद्धालु भक्त किसी कारण जैसे पारिवारिक कारण, व्यवसायिक कारण या आर्थिक कारण अथवा समय के आभाव से सिंहस्थ (कुम्भ) महापर्व पर उज्जैन नही जा सकते या अर्धकुम्भ पर्व पर हरिद्वार नही जा सकते वे अपने निवास स्थान पर उक्तपर्वो का स्नान एवं पुण्य लाभनिम्नविधि से प्राप्त कर सकते हैं। पाठको के लाभ के लिए मैं वह स्नान, पूजन अौर दान विधि लिख रहा हूँ , अगर पाठक गण स्वयं कुम्भ महापर्व याअर्धकुम्भ पर्व पर नही जा सकते या कोई रिश्तेदार अथवा परिचित नही जा सकते उन्हें मेरे द्वारा बताई विधि बताकर उनके साथ आप भी पुण्य लाभ के भागी बनें ऐसी मैं आशा करता हूं।


सर्व प्रथम व्यक्ति यह निर्णय करें कि उसे कौन से (अर्ध कुम्भ या कुम्भ महापर्व) स्नान का पुण्य लाभ के फल को प्राप्त करना है। जिस पर्व (अर्ध कुम्भ या कुम्भ पर्व) के स्नान, दान आदि का फल प्राप्त करना हों उस पर्व की स्नान तिथि को अपने निवास स्थान के पास कोई नदी, तालाब, कुआ, बावड़ी या समुद्र हो जिसके किनारे या पास कोई शिवजी का मन्दिर हो ऐसे स्थान पर अरूणोदय (सुर्योदय से लगभग सवा घंटे पहले से सुर्योदय तक) काल में नदी, कुआं आदि हो वहाँ पर कुम्भ या अर्धकुम्भ के स्थान की पवित्र पावनी नदी का ध्यान लगाकर मन से श्रद्वा पूर्वक आहवान (आमंत्रित ) करें, पूजन कर स्नान कर शिव जी के पंचाक्षरी या अौर कोई शिव मंत्र का जाप करें यदि आपके निवास स्थान के पास कोई नदी, तालाब, कुआंआदि उपलब्ध ना हों तो अपने घर के स्नानागार (स्नान करनें का स्थान) में बाल्टी या टब या स्नान पात्र में गंगाजी या क्षिप्राजी का जल डालकर उपर बताई विधि से प्रार्थना, पूजन और स्नान कर जाप करके किसी योग्य विद्वान ब्राम्हण से गणेश, अम्बिका आदि देवी देवताओं का पूजन कर कुम्भ (कलश) की स्थापना कर षोडशोपचार (सोलह उपचार) से पूजन करें, शिव पार्वती जी का पूजन अभिषेक करें, अपनी शक्ति के अनुसार सेाना, चाँदी, ताँबा या पीतल के एक, चार, ग्यारह जितने हो सके उतनें कलशों को शुद्ध घी से पूरा भरकर पूजन कर वस्त्र, मिष्ठान्न (मिठाई), फल दक्षिणा सहित संकल्प कराकर ब्राम्हणों को दान करें ।

इस प्रकार से स्नान, पूजन और दान आदि करने से कुम्भ महापर्व या अर्ध कुम्भपर्व के पुण्य लाभ का फल मिलता हैं ।

अंगारक चतुर्थी से मंगलीक दोष निवारण और दाम्पत्य सुख की प्राप्ति



जिस मंगलवार को चतुर्थी हो उसे अंगारक गणेश चतुर्थी कहते हैं। अंगारक चतुर्थी के व्रत करनें से बड़ी से बडी विघ्न बाधा, ग्रह क्लेश का नाश होता है, मंगलिक दोष का निवारण होता हैं।

गणेश पुराण की एक कथा में पृथ्वी देवी ने भरद्वाज मुनि के जपापुष्प के तुल्य अरूण पुत्र का पालन करके सात वर्ष की आयु होने पर भरद्वाज मुनि के पास पहुँचा दिया। भरद्वाज मुनि ने अपने पुत्र का विधि पूर्वक उपनयन (जनेऊ) संस्कार कराकर उसे वेद, शास्त्रो आदि विद्याओं का अध्ययन करवाने के बाद उसे गणपति मंत्र देकर श्री गणपति जी को प्रसन्न करने की आज्ञा दी। उस बालक ने सहस्त्रवर्ष तक गणेश जी का ध्यान लगाकर मंत्र जाप किया जिससे प्रसन्न होकर माघ माह की कृष्ण चतुर्थी को चन्द्र उदय होने पर गणेश जी ने आठ भुजाओं वाले और चन्द्रभाल रुप में दर्शन दिए उन्होनें मुनि पुत्र को इच्छित वरदान दिया। मुनि पुत्र ने अन्त्यन्त विनय के साथ श्री गणेश जी की स्तुति की, जो अंगारक स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई। श्री गणेश जी ने मुनि पुत्र का नाम मंगल रखा अौर उसे वरदान दिया - "हे मेदिनी नन्दन तुम देवताओं के साथ सुधा पान करोगे, तुम्हारा मंगल सर्वत्र विख्यात होगा, तुम धरणी के पुत्र हो और तुम्हारा रंग लाल हैं, इसलिए तुम्हारा नाम अंगारक नाम भी प्रसिद्ध होगा, यह तिथि अंगारक चतुर्थी के नाम से प्रख्यात होगी, पृथ्वी पर इस व्रत को जो भी करेगा उसे वर्ष पर्यन्त की चतुर्थी के व्रत करने का फल प्राप्त होगा अौर उसके किसी कार्य में विध्न नही आयेगा।

तब से यह व्रत अंगारक चतुर्थी व्रत के नाम से प्रख्यात हुआ, यह व्रत पुत्र, पौत्र आदि और समृद्धि प्रदान कर समस्त कामनाओं की पूर्ति करता हैं। नारद पुराण अौर विष्णु पुराण के अनुसार जिस किसी माह की चतुर्थी रविवार या मंगलवार को होती हैं, तो वह विशेष फलदायिनी होती हैं, उसे आंगारक चतुर्थी कहते हैं। अंगारक चतुर्थी के दिन व्रत करने वाली कन्या या महिला के मंगलिक दोष का निवारण होता है। अंगारक चतुर्थी को मंगलमुर्ति गणेशजी का पूजन मंगल देवता का पूजन और अंगारक स्तोत्र का पाठ करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

श्री सिद्धि विनायक व्रत द्वारा मनोकामना की पूर्ति


इस जन्म और जन्म जन्मान्तर पुत्र, पौत्र प्राप्तिके लिए, धन, विद्या जय और यश तथा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए, आरोग्य औरआयु की प्राप्ति के लिए श्री सिद्वि विनायक चतुर्थी व्रत करना चाहिए। श्री सिद्धि विनायक व्रत माध माह, मार्गशीर्ष माह या श्नावण माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी सेे प्रारम्भ करके एक वर्ष (12 माह की चतुर्थी) तक करें अंतिम चतुर्थी को व्रत का उद्यापन करें। पाठको के लाभ के लिए माह मे आने वाली चतुर्थी लिख रहा हूँ, आशा करता हूँ, कि पाठक गण इससे लाभान्वित होंगें।


ईस्वी सन 2016 में श्री विनायक चतुर्थी व्रत

दिनांक माह और पक्ष
13 जनवरी बुधवार पौष माह शुक्ल पक्ष
11 फरवरी गुरूवार माघ माह शुक्ल पक्ष
12 मार्च शनिवार फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष
10 अप्रेल रविवार चैत्र माह शुक्ल पक्ष
9 मई सोमवार वैशाख माह शुक्ल पक्ष
8 जून बुधवार ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष
8 जुलाई शुक्रवार आषाढ माह शुक्ल पक्
8 जुलाई शुक्रवार आषाढ माह शुक्ल पक्ष
6 अगस्त शनिवार श्रावण माह शुक्ल पक्ष
5 सिक्तम्बर सोमवार भाद्रपद माह (सिद्धि विनायक) शुक्ल पक्ष
5 अक्टूम्बर बुधवार आश्विन माह शुक्ल पक्ष
3 नवम्बर गुरूवार कार्तिक माह शुक्ल पक्ष
3 दिसम्बर शनिवार मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष

अर्ध कुम्भ पर्व की परम्परा और महत्व

हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयाग चारो तिर्थों में बारह-बारह वर्षों में कुम्भ महा पर्व का आयोजन होता हैं, इन चार कुम्भ महापर्वो के अलावा हरिद्वार और प्रयाग में अर्ध कुम्भ पर्व मनाए जाते है, जो स्थानीय कुम्भ महा पर्व से 6 वर्ष बाद मनाते हैं, यह अर्धकुम्भ पर्व उज्जैन और नासिक में आयोजन करनें की परम्परा नहीं हैं।

सिंह राशि में बृहस्पति (गुरु) और मेष राशि में सुर्य प्रवेश करता है उस समय हरिद्वार में अर्ध कुम्भ पर्व का आयोजन होता हैं, अर्धकुम्भ पर्व में श्री गंगा जी में गंगा स्नान, जाप, पूजा, मंत्र अनुष्ठान, यज्ञ, दान आदि का विशेष महत्व माना जाता हैं।

अर्धकुम्भ पर्व प्रारम्भ होने के विषय में कई बुजुर्ग व्यक्तियों का कहना हैं कि मुगल साम्राज्य में हिन्दू धर्म पर अत्यधिक कुठाराघात होने के कारण हिन्दु धर्म की रक्षा के लिए सभी स्थानों के शांकराचायों नें मिलकर हरिद्वार और प्रयाग में सभी साधु, सन्त, महात्मा और विद्वानों को एकत्र करके उन सभी से विचार विमर्श करके अर्ध कुम्भ का आयोजन हरिद्वार और प्रयाग में प्रारम्भ किया तभी से हरिद्वार और प्रयाग में अर्ध कुम्भ पर्व का आयोजन होने लगा है, कुम्भमहा पर्व की तरह अर्ध कुम्भ पर्व भी हरिद्वार और प्रयाग मे स्नान, दान, पूजन, पाठ, जाप, यज्ञ आदि करनें का विशेष महत्व माना गया है।

अर्ध कुम्भ पर्व पर लाखों, करोड़ो की संख्या में धर्म परायण, श्रद्धालु जन स्नान, दान अौर सिद्ध सन्त, महात्मा, साधु और विद्वानों के दर्शन करते है, उनके प्रवचन सुनकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। कई संत, महात्मा और साधु और विद्वान कुछ माह पहले अर्ध कुम्भ के तीर्थ स्थल पर पहुँचकर आत्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए जाप, ध्यान, यज्ञ और तपस्या में लीन हो जाते है।

सिंह राशि में गुरू और मेष राशि में सुर्य आने से इस वर्ष 13 अप्रैल बुधवार सन 2016 ई. (चैत्र मास शुक्ल पक्ष सप्तमी) को हरिद्वार में अर्धकुम्भ पर्व का मुख्य स्नान होगा, इस दिन मेष संक्रान्ति होने के कारण भी अर्थ कुम्भ पर्व का मुख्य स्नान और स्नान, दान आदि के लिए विशेष रूप से पुण्य प्रदान करने वाला हैं।

अर्ध कुम्भ पर्व (हरिद्वार) की स्नान तिथियाँ


(1) प्रथम स्नान - 20 मार्च रवि वार 2016 ई. (फालगुन माह शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि) को महा विषुव दिवस और सायन मेष संक्रान्ति होने से प्रथम स्नान का विशेष महत्व रहेगा, अर्ध कुम्भ के स्नान दान के पुण्य लाभ अर्जित करनें का समय अरूणोदय काल (सुर्योदय से लगभग सवा घंटे पहले से सुर्योदय तक) का रहेगा, जाप, पाठ, पूजन, यज्ञ दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते है।

(2) द्वितीय स्नान - 7 अप्रेल गुरुवार 2016 ई. (चैत्र माह कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथी) को होगा,स्नान, दान का पुण्य लाभ अर्जित करने का समय अरूणोदय काल रहेगा, जाप, पूजा, पाठ, यज्ञ, दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते हैं।

(3) तृतीय स्नान - 8 अप्रेल शुक्र वार 2016 ई. ( चैत्र माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि) को होगा, इस दिन नव (नया) सौम्य नाम का संवत्सर (वि. 2073) और नवरात्रि प्रारम्भ होगी, स्नान, दान का पूण्य लाभ लेने कासम अरूणेादय काल रहेगा, नव संवत्सर प्रारम्भ (सनातन धर्म का नया वर्ष) होने अौर नवरात्रि प्रारम्भ होने से जाप, पूजा, पाठ, यज्ञ, दान आदि के लिए पूरा दिन पुण्य दायक रहेगा।

(4) चतुर्थ (ग्रमुख) स्नान - 13 अप्रैल बुधवार 2016 ई. (चैत्र माह शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि) को चतुर्थ स्नान वाले दिन मेष संक्रान्ति होने से संक्रान्ति का पुण्य लाभ प्राप्त करने का समय दोपहर 01/23 बजे से शुरू होगा, परन्तु प्रमुख चतुर्थ स्नान के स्नान दान आदि के पुण्य लाभ प्राप्त करने का समय प्रात: 04 / 27 05 / 57 बजे तक रहेगा, जाप, पाठ यज्ञ, पूजा दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते हैं। फिर भी प्रमुख स्नान होने से पूरा दिन स्नान दान आदि के लिए विशेष पुण्य प्रदान करने वाला रहेगा।

(5) पंचम स्नान - 14 अप्रेल गुरूवार 2016 ई. (चैत्र माह शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि) को पंचम स्नान के साथ मेष संक्रान्ति का पुण्य काल (पुण्य प्राप्त करनें का समय) 11/47 बजे तक रहने के कारण यह दिन भी गंगा स्नान अौर कुम्भ स्नान दान आदि से विशेष पुण्य लाभ कराने वाला रहेगा।

(6) षष्ठ स्नान - 17 अप्रेल रविवार 2016 ई. (चैत्र माह शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि) को होगा जिसका पुण्य लाभ अर्जित करने का समय ब्रह्म मुहुर्त से सुर्योदय तक या अरूणोदय (सुर्योदय के लगभग सवा घंटे पहले से सुर्योदय तक) काल का रहेगा। पूजा ,पाठ, यज्ञ दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते हैं।

(7) सप्तम स्नान - 22 अप्रैल रविवार 2016 ईं. (चैत्र माह शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि) को चित्रा नक्षत्र और पूर्णिमा प्रात: 7/19 बजे तक रहने के कारण यह दिन गंगा स्नान और कुम्भ पर्व स्नान मोक्ष प्रदान करने वाला हो जाएगा। स्नान दान आदि के पुण्य का लाभ प्राप्त करनें का समय प्रात: आरूणोदयकाल का रहेगा, जाप, पूजा, पाठ यज्ञ अौर दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते है। अनेक संस्थाएँ इस दिन ही कुम्भ पर्व का समापन कर देगी।

(8) अष्टम स्नान - 3 मई मंगलवार 2016 ई. (वैशाख माह कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि) को होगा। स्नान दान आदि के पुण्य लाभ प्राप्ति का समय अरूणाेंदय काल का रहेगा। जाप, पाठ, पूजा यज्ञ दान आदि सुर्योदय के बाद भी का सकते हैं।

(9) नवम (अंतिम) स्नान - 6 मई शुक्रवार 2016 ई. ( वैसाख माह कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि) को होगा। स्नान, दान आदि के पुण्य लाभ प्राप्त करने का समय अरूणोदय काल रहेगा। जाप पाठ दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते हैं।

कुम्भ महापर्व की परम्परा और महत्व

" कुम्भ महा पर्व " भारत प्राचीन परम्परा और गौरवमयी
वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का प्रतीक है। आदि शकराचार्य जी ने भी वैदिक काल से प्रचलित " कुम्भ महा पर्व " की परम्परा का उद्धार एवं प्रचार किया था। "कुम्भ" पर्व की यह परम्परा मनुष्य के द्वारा रत्न, ऐश्वर्य, सुख, आरोग्य और आत्म ज्ञान व अमरत्व की इच्छा से जुड़ी हुई हैं।

हमारे ऋषियों मुनियों ने सर्वश्रेष्ठ ' आत्म ज्ञान ' के अमरत्व को समझने या समझाने के लिए के किए " कुम्भ " रुपी सुन्दर प्रतीक को हमारे सामने प्रस्तुत किया या हमारे सम्मुख ररवा हैं।

अन्त: शुन्यो बहि: शुन्य: शु्न्य: कुम्भ इवाम्बरे ।
अन्त: पूर्णों बहि: पूर्ण: पूर्ण: कुम्भ इवार्णवे ।।


अर्थात् जिस प्रकार एक खाली " कुम्भ " आकाश में पड़ा हो, तो उसके अन्दर और बाहर सभी जगह आकाश ही आकाश रहता है, तथा जल से पूर्ण (भरा) " कुम्भ " समुद्र में डूबा हो, तो उसके अन्दर और बाहर जल ही जल रहता हैं, उसी प्रकार इस जगत के अन्दर बाहर सर्वत्र आत्मा ही है। कुम्भ पर्व आत्मा अौर आत्म ज्ञान सेे जुड़ा हुआ हैं ,
धर्म के मूल आधार पर ही समस्त मानव समाज प्रतिष्ठित है - " धर्मो विश्वस्य जगत : प्रतिष्ठा " । धर्म ही सम्पूर्ण जगत का आधार हैं, धर्म ने ही मानव समाज को बाँध रखा हैं जिसका मुल तत्व परमात्म तत्व हैं, इसी प्रकार सनातन धर्म का प्रतीक कुम्भ पर्व है। कुम्भ महा पर्व के अवसर पर पूरे विश्व के अनेक देशों से असंख्य श्रद्धालु और धर्मायण लोग एकत्र हो कर कुम्भ महा पर्व वाले स्थान पर (नासिक, हरिद्वार, प्रयाग और उज्जैन) स्नान, दान, तप आदि करके तथा वहाँ (कुम्भ महा पर्व वाले स्थान) पर रहने वाले और कुम्भ महा पर्व मनाने आये हुए संत, महात्माओं के अमृत रूपी प्रवचनों को सुनकर धन्य हो जाते हैं। वर्तमान समय में कुम्भ महा पर्व को कुम्भ मेला कहा जाने लगा हैं, मेला उसे कहते हैं जहाँ जन समुदाय एकत्र हो कर क्रय विक्रय, खेल तमाशे, नाटक, मनो विनोद और भोजन आदि करते हैं। परन्तु कुम्भ महापर्व का आयेजन हमारे धर्म शास्त्रों द्वारा इन बातों या इन कामों के लिए नही हुआ है। कुम्भ के साथ पर्व या महा पर्व कहने से ही सांस्कृतिक, धार्मिक या आध्यात्मिक भाव स्पष्ट होता हैं। प्राय: ऐसे धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनाें का मुख्य उद्देश्य आत्म शुद्धि और आत्म कल्याण होता हैं ।


कुम्भ महा पर्व या कुम्भ पर्व अथवा अर्द्धकुम्भ पर्व में ऋषि, महर्षि, साधु, सन्त और विद्वानों का समागम राष्ट्र की ऐहिक तथा पारलौकिक व्यवस्था पर विचार विमर्श का कारण था, जिससे समाज में नवीन चेतना की प्राप्ति होती थी और देश, समय और वहाँ के वातावरण पर धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व का वर्चस्व स्थापित होता था ।
समय की दृष्ट्रि से ऐसे ग्रहयोग जो बम्हाण्ड में लुप्त और सुप्त अमृत्व को जागृत कर देते हैं, कालयोग (समय के योग) से 12 -12 वर्षों में चार स्थानो में ये प्रकट होते हैं । उस समय हरिद्वार (गंगा), प्रयाग (त्रिवेणी), उज्जैन (क्षिप्रा), नासिक (गोदावरी) में पतितपावनी नदियाँ अपनी जल धारा में अमृत तत्व को प्रवाहित करती हैँ अर्थात् देश, समय, वस्तु अौर वातावरण में अमृत का प्रादुर्भाव हो जाता हैं उसके फल स्वरुप अमृत घट या अमृत कुम्भ का अवतरण होता हैं। कलश (कुम्भ) के मुख में विष्णु , कष्ठ में रुद्र अौर मूल भाग में ब्रम्हा, मध्य भाग में मातृगण कुक्षि में समस्त समुद्र, पहाड़ और पृथ्वी रहते हैं तथा अंगों के सहित ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रहतें हैं।
काल (समय) चक्र न केवल जीवन की क्रियाओं का मूल आधार हैं बल्कि समस्त यज्ञकर्म, अनुष्ठान अौर संस्कार भी काल (समय) चक्र पर आधारित हैं, काल (समय) चक्र में सूर्य, चन्द्र और देवगुरु बृहस्पति (गुरु) का महत्वपूर्ण स्थान हैं, इन तीन ग्रहों का योग ही कुम्भ महापर्व या कुम्भ पर्व का मुख्य आधार हैं।

कुम्भ पर्व क्यों मनाया जाता है ?


कुम्भ पर्व का प्रारम्भ कब से हुआ इसका ठीक प्रकार सें निर्णय कर पाना कठिन है क्योंकि वेदों में क़ुम्भ पर्व का आधार सुत्रों और मंत्रो में वर्णन हैं, जबकि पुराणों में चार प्रकार की कथाओं का उल्लेख मिलता हैं पहली भगवान शिव और गंगाजी की कथा, दुसरी महर्षि दुर्वासा की कथा तथा तीसरी कद्रु और विनता की कथा और चौथी समुद्र मंथन की कथा ये कथाएँ प्रसिद्ध हैं। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध कथा समुद्र मंथन की कथा हैं। स्कन्ध पुराण की कथा मेंआता है कि एक बार विष्णु भगवान के निर्देश के अनुसार देवों और असुरों ने अमृत कुम्भ की प्राप्ति के लिए संयुक्त रूप से मिलकर क्षीरोद् सागर (क्षीर सागर ) में मंदराचल पर्वत और लासुकि नाग के द्वारा समुद्र मंथन किया जिससे पहले हलाहल (विष) उत्पन्न हुआ जिसे भगवान शिव जी ने पी लिया, हलाहल की ज्वाला के शांत होनें पर पुन: समुद्र मंथन प्रारम्भ हुआ जिससेे पुष्पक विमान, ऐरावत हाथी, पारिजात वृक्ष, नृत्य कला में पारंगत रम्भा, कौस्तुभ मणि, द्वितीया का बाल चन्द्रमा, कुण्डल, धनुष, कामधेनु, उच्चै: श्रवा, लक्ष्मी, धनवन्तर, विश्वकर्मा उत्पन्न हुए।

धनवन्तरी के हाथो मे कुम्भ शोभायमान हुआ,जो कि मुख तक अमृत से पूर्ण भरा हुआ था। विष्णु भगवान की कृपा से वह अमृत कुम्भ इन्द्र को प्राप्त हुआ, देवताओं के इशारे से इन्द्र पुत्र जयन्त अमृत कुम्भ को लेकर भागने लगे तब देत्यगण जयन्त का पीछा करने लगे। अमृत कुम्भ की प्राप्ति के लिए देवताओं और राक्षसों में दिव्य 12 दिनों (मनुष्यों के 12 वर्ष) तक भयंकर युद्ध हुआ, इस युद्ध में अमृत कुम्भ की रक्षा करते समय पृथ्वी पर जिन स्थानों पर अमृत की बुँदे गिरी, उन स्थानो (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कुम्भ महा पर्व मनाया जाता हैं । मोहिनी रुप धारण कर विष्णु भगवान नें अमृत का भाग राक्षसों को न देकर देवताओं को पिला दिया जिससे देवगण अमर हो गए। पुराणों के अनुसार अमृत कुम्भ की रक्षा करने में बृहस्पति (गुरु) सूर्य और चन्द्रमा ने विशेष रूप से देवताओं की सहायता की थी। इस कारण सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति (गुरू) ग्रहों के विशेष योग होने पर ही कुम्भ महा पर्व का आयोजन किया जाता हैं।

सिंहस्थ (कुम्भ) महापर्व और उज्जैन के सिंहस्थ का माहात्म्य


कल्प भेद से उज्जैन के दुसरे पौराणिक नाम अवन्तिका पुरी, महाकाल पुरी (महाकाल नगरी), उज्जयिनी, कुशस्थली, विशाला और अमरावती भी हैं। उज्जैन का नाम प्रत्येक युग में परिवर्तित होता रहता है, इसके सम्बन्ध में स्कन्ध पुराण में वर्णन आता हैं -

कल्पे कल्पे$खिलं विश्वं कालयेद्य : स्वलीलया ।
तं कालं कालयित्वा यो महा कालाे$भव त्किल ।।


इस वर्ष 21 मई शनिवार सन 2016 ई. (वैशाख पुर्णिमा) को अवन्तिका पुरी (उज्जैन) में क्षिप्रा नदी के किनारे पर कुम्भ महापर्व आयोजित होगा। शास्त्र के अनुसार जब वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन गुरु सिंह राशि में हो, तो उज्जैन में कुम्भ महा पर्व का योग होता हैं -
मेषराशि गते सुर्ये सिंह राशिराशौ बृहस्पतौ ।
उज्जयिन्यां भवेतकुम्भ: सर्व सौख्य विवर्धन: ।।


स्कन्ध पुराण मे भी लिखा हैं -
माधवे धवले पक्षे सिंहे जीवे अजे रवौ । ।
तुला राशौ निशा नाथे पूर्णायां पूर्णिमातिथौ ।
उज्जयिन्यां तथा कुम्भ: योग जात: क्षमातले ।।


उपरोक्त ग्रह योग 21 मई शनिवार (वैशारवी पूर्णिमा ) को घटित हो रहा हैं, जिसके कारण उज्जैन में कुम्भ महा पर्व (सिंहस्थ) शाही स्नान का योग बन रहा हैं। मुख्य रूप से देव गुरू बृहस्पति (गुरू) के सिहं राशि के होने के समय ही यह कुम्भ महापर्व होता हैं, इस कारण इसे " सिंहस्थ महा पर्व " भी कहा जाता हैं।

उज्जैन को पृथ्वी का नाभि देश कहा गया हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों मे महाकाल लिंग उज्जैन मे ही हैं और 51 शक्तिपीठों में उज्जैन में एक शक्तिपीठ भी है। द्वापर युग में श्री कृष्ण, बलराम भी उज्जैन के महर्षि सांदीपनि के आश्रम में विद्या अध्ययन करने के लिए आए थे। महाराज विक्रमादित्य के समय उज्जयिनी (उज्जैन) भारत की राजधानी थी। भारतीय ज्योतिष शास्त्र मे भी देशान्तर की शून्य रेखा उज्जैन से प्रारम्भ होना माना गया है। उज्जैन सप्तपुरियो मे से एक पुरी है। शिप्रा नदी पवित्र और पापहारिणी और सर्वत्र पुण्यदायिनी हैं, परन्तु अवन्ती पुरी (उज्जैन) में शिप्रा नदी का माहात्म्य और अधिक बढ जाता है, जो मनुष्य शिप्रा नदी में स्नान करके महेश्वर भगवान का पूजन करता है, वह महादेव जी और महादेवी जी की कृपा प्राप्त करके सम्पूर्ण मनोंकामनाओं की पूर्ति कर लेता हैं।

सिंहस्थ (कुम्भ) महापर्व की मुख्य स्नान तिथियाँ


(1) प्रथम स्नान - 13 अप्रेल बुधवार 2016 ईं. (चैत्र मास शुक्ल पक्ष, सप्तमी) से उज्जैन में कुम्भ महा पर्व का प्रथम स्नान और कुम्भ महा पर्व के स्नान दान जप अनुष्ठान आदि पुण्य लाभ प्राप्त करने का सु अवसर प्रात: ब्रह्म मुहुर्त से प्रारम्भ हो जाएगा।

(2) द्वितीय स्नान - 17 अप्रेल रविवार 2016 ई. (चैत्र मास शुक्लपक्ष एकादशी तिथि) को पुण्य लाभ का समय प्रात: 4/38 बजे से प्रारम्भ होकर प्रात : 06/08 बजे तक रहेगा, कुम्भ महा पर्व के तीर्थ स्नान सुर्योदय से पहले अरूणोदय में करने' का शास्त्रों में वर्णन हैं, जाप, पाठ दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते हैं।

(3) तृतीय स्नान - 22 अप्रेल शुक्रवार 2016 ई. (चैत्र मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथी) को स्नान दान आदि के पूण्यलाभ प्राप्त करने का समय प्रात: 04/35 बजे से प्रारम्भ हो जाएगा अौर सुर्योदय तक रहेगा। पूजा, पाठ, दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते है।

(4) चतुर्थ स्नान - 3 मई मंगलवार 2016 ई. (वैशाख मास कृष्ण पक्ष वरूथिनी एकादशी तिथि) को स्नान, ध्यान, जाप, पाठ और दान आदि के पुण्य लाभ प्राप्त करने का समय प्रात: 04/31 बजे से प्रारम्भ होकर प्रात: 05/58 बजे तक रहेगा, जाप, पाठ दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते हैं।

(5) पंचम स्नान - 6 मई शुकवार 2016 ई. (वैशाख मास कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि) को स्नान, ध्यान, दान आदि के पुण्य लाभ प्राप्त करने का समम प्रात: 04 /29 बजे से प्रात: 05 /56 बजे तक रहेगा, पूजा,पाठ ,ध्यान , जाप और दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते हैं।

(6) षष्ठ स्नान - 9 मई सोमवार 2016 ई. ( वैशाख मास शुक्ल पक्ष तृतीया तिथी) को स्नान ,ध्यान , जाप , पाठऔर दान आदि का पुण्य लाभ प्राप्त करने का समय पात : 04/27 बजे से प्रारम्भ होकर प्रात : 05/54 बजे तक रहेगा, पूजापाठ, जाप और दान सुर्योदय के बाद भी का सकते हैं।

(7) सप्तम स्नान - 11 मई बुधवार 2016 ई. (वैशाख मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथी) को स्नान, ध्यान, जाप, पाठ अौर दान आदि का पूण्य लाभ प्राप्त करने का समय प्रात: 04/26 से प्रारम्भ होकर प्रात: 05/53 बजे तक रहेगा, पूजा, पाठ, जाप और दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते हैं, यह तिथि आद्य गुरु स्वामी शंकराचार्य जी की अवतरण तिथि हैं।

(8) अष्टम स्नान - 17 मई मंगलवार 2016 ई. ( वैशाख मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि) को स्नान, ध्यान, जाप, दान आदि का पुण्य लाभ प्राप्त करने का समय प्रात: 04/24 बजे से प्राम्भ होकर प्रात: 5/51 बजे तक रहेगा। पूजा, पाठ, जाप और दान आदि सुर्योदय के बाद भी कर सकते हैं।

(9) नवम (शाही स्नान) स्नान - 21 मई शनिवार 2016 ई. (वैशाख मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि) इस दिन स्नान, ध्यान, जाप, पूजा, पाठ और दान आदि का पुण्य लाभ पाप्त करने का विशेष मु्हर्त प्रात: 04/21 बजे से प्रारम्भ होगा जो सुर्योदय तक रहेगा, शाही स्नान वाले दिन उज्जैन में सुर्योदय प्रात: 5/48 बजे होगा, जो भक्त विशेष मुहुर्त में स्नान नही कर पाए वे सुर्योदय के समय स्नान कर पूजा, पाठ जाप ध्यान और दान आदि करके शाही स्नान के पुण्य लाभ को प्राप्त करें।

यदि उपरोक्त (उपर बताए गए) समय में भीड़ आदि या किसी अन्य कारणों से आपका कुम्भ महापर्व का स्नानसम्भव नही हो, तो सुर्यास्त पर्यन्त जब समय हो तब स्नान ध्यान पूजा पाठ जाप दान आदि कर लेना चाहिए, क्योंकि कुम्भ महा पर्व का माहात्म्य तो कुम्भस्नान वाले दिन स्नान मुर्हुत के बाद भी पुरा दिन तक रहता हैं।

शाही स्नान वाले दिन विभिन्न अरवाडों और साधु सन्त महात्माओं की शाही शोभा यात्राएँ निकलेगी, उज्जैन के सिंहस्थ (कुम्भ) महापर्व में एक ही बार शाही स्नान होता हैं।

कुम्भ महापर्व पर स्नान दान का माहात्म्य


हमारे धर्म शास्त्रोँ में हरिद्वार, प्रयाग, नासिक, उज्जैन तीर्थों में कुम्भ स्नान, दान, जाप, पूजा, ध्यान और यज्ञ आदि अनुष्ठान करने का विशेष महत्व कहा गया है। हजाराे अश्वमेंघ यज्ञ करने से या सेकड़ों वाजपेय यज्ञ करने से अथवा लाख बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने से जो पुण्य लाभ प्राप्त होते है वह सभी पुण्य फल कुम्भ स्नान करने से प्राप्त हो जाते है -

अशिमेध सहस्राणि वाजपेय शतानि च।
लक्षं प्रदक्षिणा भूमे : कुम्भ स्नानेन हि तत्फलम् ।।


स्नान करनें के बाद संध्या, तर्पण आदि के बाद गणेश अम्बिका आदि देवताओं के पूजन सहित कुम्भ (कलश) को स्थापित करें और श्रद्धा, भक्ति के साथ स्थापित कुम्भ का षोड़शोपचार (सोलह उपचार से) से पूजन करनें के बाद एक, चार, ग्यारह यथाशक्ति सोने, चाँदी, ताँबा, पीतल के कुम्भों (कलशों) में शुद्ध घी भरकर वस्त्र, मिष्ठान्न, गुड़, फल आदि सहित दक्षिणा लेकर संकल्प के द्वारा किसी योग्य विद्वान ब्राम्हण को दान करना चाहिए।

कुम्भ पर्व पर विधि पूर्वक.शुद्ध घी से पूरा भरा कुम्भ (कलश) का पूजन करके उसे वस्त्र, अलंकार, मिष्ठान्न, फल आदि दक्षिणा सहित संकल्प के साथ किसी योग्य ब्राम्हण (एक से अधिक कुम्भ हो, तो कराम्हणाें को) को दान करने से सेकड़ों गौ दान करने का पुण्य लाभ मिलता हैं।

कुम्भ पर्व पर साधु , सन्तों , महात्माओं को भोजन कराकर यथा शक्ति दक्षिणा आदि दान करनें से आत्म कल्याण के साथ साथ पितरों की आत्मा की तृप्ति होती है।

अर्ध कुम्भ या कुम्भ पर्व व्यक्ति के जन जीवन की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक चेतना विंभिन्न आयामों के संगम का प्रतीक हैं, जिसमें विश्व के अनेक धर्म गुरुओं, सिद्ध महा पुरुषों, सिद्ध महात्माओं और धर्म परायण श्रद्धालुओं का समागम होता हैं। जो मनुष्य कुम्भ स्नान की महापुण्य बेला पर कुम्भपर्व वाले स्थान के स्नान के घाट पर घाट के जल में खड़े होकर " ऊँ नम : शिवायै गंगायै शिवायै नमो नम: । नमस्ते विष्णु रुपिण्यै बम्ह मुर्त्यै नमो$स्तुते।। " मंत्र का जाप करता है और जाप के बाद गंगा स्तोत्र , शिव स्तोत्र आदि का पाठ करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।